मुझ से ज़ियादा कौन तमाशा देख सकेगा
गाँधी-जी के तीनों बंदर मेरे अंदर
नाज़िर वहीद
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रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के
एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें
नाज़िर वहीद