आँखों में है लिहाज़ तबस्सुम-फ़िज़ा हैं लब
शुक्र-ए-ख़ुदा के आज तो कुछ राह पर हैं आप
नसीम देहलवी
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नाम मेरा सुनते ही शर्मा गए
तुम ने तो ख़ुद आप को रुस्वा किया
नसीम देहलवी
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तिरा जमाल बना मैं कभी, कभी एहसाँ
ग़रज़ ये थी कि मुझे बरगुज़ीदा होना था
नसीम देहलवी
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