EN اردو
नादिर लखनवी शायरी | शाही शायरी

नादिर लखनवी शेर

10 शेर

चलती तो है पर शोख़ी-ए-रफ़्तार कहाँ है
तलवार में पाज़ेब की झंकार कहाँ है

नादिर लखनवी




दरिया-ए-शराब उस ने बहाया है हमेशा
साक़ी से जो कश्ती के तलबगार हुए हैं

नादिर लखनवी




हैं दीन के पाबंद न दुनिया के मुक़य्यद
क्या इश्क़ ने इस भूल-भुलय्याँ से निकाला

नादिर लखनवी




हो गए राम जो तुम ग़ैर से ए जान-ए-जहाँ
जल रही है दिल-ए-पुर-नूर की लंका देखो

नादिर लखनवी




इक बात पर क़रार उन्हें रात-भर नहीं
दो दो पहर जो हाँ है तो दो दो पहर नहीं

नादिर लखनवी




न ख़ंजर उठेगा न तलवार इन से
ये बाज़ू मिरे आज़माए हुए हैं

नादिर लखनवी




न ख़ंजर उठेगा न तलवार उन से
वो बाज़ू मिरे आज़माए हुए हैं

नादिर लखनवी




नाव काग़ज़ की तन-ए-ख़ाकी-ए-इंसाँ समझो
ग़र्क़ हो जाएँगी छींटा जो पड़ा पानी का

नादिर लखनवी




फिर न बाक़ी रहे ग़ुबार कभी
होली खेलो जो ख़ाकसारों में

नादिर लखनवी