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नदीम अहमद शायरी | शाही शायरी

नदीम अहमद शेर

6 शेर

दिल का शजर तो और भी पलने की आड़ में
मुरझा गया है फूलने-फलने के नाम पर

नदीम अहमद




इश्क़ में ख़ैर था जुनूँ लाज़िम
अब कोई दूसरा हुनर भी करूँ

नदीम अहमद




कभी तो लगता है ये उज़्र-ए-लंग है वर्ना
मुझे तो कुफ़्र ने इस्लाम पर लगाया हुआ है

नदीम अहमद




कभी तो यूँ कि मकाँ के मकीं नहीं होते
कभी कभी तो मकीं का मकाँ नहीं होता

नदीम अहमद




कुछ दिनों दश्त भी आबाद हुआ चाहता है
कुछ दिनों के लिए अब शहर को वीरानी दे

नदीम अहमद




मालूम नहीं नींद किसे कहते हैं लेकिन
करता तो हूँ इक काम मैं सोने की तरह का

नदीम अहमद