रुकना पड़ेगा और भी चलने के नाम पर
गिरती रहेगी ख़ल्क़ सँभलने के नाम पर
फँसता गया हूँ और निकलने की सई में
आफ़त मज़ीद आई है टलने के नाम पर
ये क्या तिलिस्म है कि उभरने के शौक़ में
आवाज़ दब गई है निकलने के नाम पर
दिल का शजर तो और भी पलने की आड़ में
मुरझा गया है फूलने-फलने के नाम पर
वो जा चुका है और बदन के नवाह में
अब जम रही है बर्फ़ पिघलने के नाम पर
बदलेगा कोई रोज़ नए-पन के शौक़ में
यकसाँ रहेगा कोई बदलने के नाम पर
मअ'नी का सब्ज़ा-गाह नज़र आ गया तो फिर
भड़केगा लफ़्ज़ शेर में ढलने के नाम पर
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ग़ज़ल
रुकना पड़ेगा और भी चलने के नाम पर
नदीम अहमद