बाक़ी अभी है तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ू
क्यूँ-कर कहूँ कि कोई तमन्ना नहीं मुझे
मुज़फ़्फ़र अली असीर
काबे चलता हूँ पर इतना तो बता
मय-कदा कोई है ज़ाहिद राह में
मुज़फ़्फ़र अली असीर
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
मग़फ़िरत की नज़र आती है बस इतनी सूरत
हम गुनाहों से पशेमान रहा करते हैं
मुज़फ़्फ़र अली असीर
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
नज़्ज़ारा-ए-क़ातिल ने किया महव ये हम को
गर्दन पे चमकती हुई शमशीर न सूझी
मुज़फ़्फ़र अली असीर
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
रौनक़ गुलशन जो वो रिंद-ए-शराबी हो गया
फूल साग़र बन गया ग़ुंचा गुलाबी हो गया
मुज़फ़्फ़र अली असीर
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
वाह क्या इस गुल-बदन का शोख़ है रंग-ए-बदन
जामा-ए-आबी अगर पहना गुलाबी हो गया
मुज़फ़्फ़र अली असीर
टैग:
| हुस्न |
| 2 लाइन शायरी |