देखा नहीं उस को कितने दिन से
उँगली पे किया हिसाब हम ने
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
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किसी का नाम न लूँ और ग़ज़ल के पर्दे में
बयान उस की मैं सारी सिफ़ात भी कर लूँ
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
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मैं अगर चुप हूँ ये बहता हुआ दरिया क्या है
लब-कुशा हूँ तो मिरी बात से पहले क्या था
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
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