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ये कैसा खेल है अब उस से बात भी कर लूँ | शाही शायरी
ye kaisa khel hai ab us se baat bhi kar lun

ग़ज़ल

ये कैसा खेल है अब उस से बात भी कर लूँ

मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी

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ये कैसा खेल है अब उस से बात भी कर लूँ
कहे तो जीत को अपनी मैं मात भी कर लूँ

ये इख़्तियार मिरा तुझ को जिस तरह सोचूँ
सहर को याद से और दिल से घात भी कर लूँ

ये दुख भी साथ चलेगा कि अब बिछड़ना है
अगर सफ़र में उसे अपने साथ भी कर लूँ

किसी का नाम न लूँ और ग़ज़ल के पर्दे में
बयान उस की मैं सारी सिफ़ात भी कर लूँ

तू मेरी ज़ात का मेहवर मिरा मदार भी तू
ये मुश्त-ए-ख़ाक इसे काएनात भी कर लूँ