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मुर्तज़ा बिरलास शायरी | शाही शायरी

मुर्तज़ा बिरलास शेर

4 शेर

चेहरे की चाँदनी पे न इतना भी मान कर
वक़्त-ए-सहर तू रंग कभी चाँद का भी देख

मुर्तज़ा बिरलास




दुश्मन-ए-जाँ ही सही दोस्त समझता हूँ उसे
बद-दुआ जिस की मुझे बन के दुआ लगती है

मुर्तज़ा बिरलास




माना कि तेरा मुझ से कोई वास्ता नहीं
मिलने के ब'अद मुझ से ज़रा आइना भी देख

मुर्तज़ा बिरलास




मुझे की गई है ये पेशकश कि सज़ा में होंगी रियायतें
जो क़ुसूर मैं ने किया नहीं वो क़ुबूल कर लूँ दबाव में

मुर्तज़ा बिरलास