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मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी शायरी | शाही शायरी

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी शेर

11 शेर

आँख अपनी तिरी अबरू पे जमी रहती है
रोज़ इस बैत पे हम साद किया करते हैं

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी




चार बोसे तो दिया कीजिए तनख़्वाह मुझे
एक बोसे पे मिरा ख़ाक गुज़ारा होगा

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी




हर इक फ़िक़रे पे है झिड़की तो है हर बात पर गाली
तुम ऐसे ख़ूबसूरत हो के इतने बद-ज़बाँ क्यूँ हो

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी




हिदायत शैख़ करते थे बहुत बहर-ए-नमाज़ अक्सर
जो पढ़ना भी पड़ी तो हम ने टाली बे-वज़ू बरसों

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी




हुजूम-ए-रंज-ओ-ग़म-ओ-दर्द है मरूँ क्यूँकर
क़दम उठाऊँ जो आगे कुशादा राह मिले

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी




जो तेरे गुनह बख़्शेगा वाइ'ज़ वो मिरे भी
क्या तेरा ख़ुदा और है बंदे का ख़ुदा और

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी




काफ़िर हो फिर जो शरअ' का कुछ भी करे ख़याल
जब जाम भर के हाथ से यार अपने दे शराब

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी




मलक-उल-मौत मोअज़्ज़िन है मिरा वस्ल की रात
दम निकल जाता है जब वक़्त-ए-अज़ाँ आता है

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी




न लड़ाओ नज़र रक़ीबों से
काम अच्छा नहीं लड़ाई का

मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी