क़श्क़ा नहीं पेशानी पे उस माह-जबीं के
अल्लाह ने ये हुस्न के ख़िर्मन को है चाँका
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
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शायद मिज़ाज हम से मुकद्दर है यार का
लिक्खा है उस ने हम को ब-ख़्त्त-ए-ग़ुबार ख़त
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
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