आगही भूलने देती नहीं हस्ती का मआल
टूट के ख़्वाब बिखरता है तो हँस देते हैं
मुमताज़ मीरज़ा
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न जाने कब निगह-ए-बाग़बाँ बदल जाए
हर आन फूलों को धड़का लगा सा रहता है
मुमताज़ मीरज़ा
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रात काटे नहीं कटती है किसी सूरत से
दिन तो दुनिया के बखेड़ों में गुज़र जाता है
मुमताज़ मीरज़ा
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