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मुईन शादाब शायरी | शाही शायरी

मुईन शादाब शेर

3 शेर

किसी के साथ गुज़ारा हुआ वो इक लम्हा
अगर मैं सोचने बैठूँ तो ज़िंदगी कम है

that single moment I had spent in someone's company
were I to sit and ponder it a lifetime's short for me

मुईन शादाब




तेरी निगाह तो इस दौर की ज़कात हुई
जो मुस्तहिक़ है उसी तक नहीं पहुँचती है

मुईन शादाब




उस से मिलने की ख़ुशी ब'अद में दुख देती है
जश्न के ब'अद का सन्नाटा बहुत खलता है

मुईन शादाब