आए थे बे-नियाज़ तिरी बारगाह में
जाते हैं इक हुजूम-ए-तमन्ना लिए हुए
मतीन नियाज़ी
आदमी और दर्द से ना-आश्ना मुमकिन नहीं
अक्स से ख़ाली हो कोई आईना मुमकिन नहीं
मतीन नियाज़ी
आप से याद आप की अच्छी
आप तो हम को भूल जाते हैं
मतीन नियाज़ी
आतिश-ए-गुल कोई चिंगारी नहीं शो'ला नहीं
फूल खिलते हैं तो गुलशन मिरा जलता क्यूँ है
मतीन नियाज़ी
अगर दुनिया तुझे दीवाना कहती है तो कहने दे
वफ़ादारान-ए-उल्फ़त पर यही इल्ज़ाम आता है
मतीन नियाज़ी
ऐसे खोए सहर के दीवाने
लूट कर शाम तक न घर आए
मतीन नियाज़ी
अनासिर की कोई तरतीब क़ाएम रह नहीं सकती
तग़य्युर ग़ैर-फ़ानी है तग़य्युर जावेदानी है
मतीन नियाज़ी
बच्चों का सा मिज़ाज है तख़्लीक़-कार का
अपने सिवा किसी को बड़ा मानता नहीं
मतीन नियाज़ी
फ़ज़ा में गूँज रही हैं कहानियाँ ग़म की
हमीं को हौसला-ए-शरह-ए-दास्ताँ न रहा
मतीन नियाज़ी