क्या मेरी तरह ख़ानमाँ-बर्बाद हो तुम भी
क्या बात है तुम घर का पता क्यूँ नहीं देते
मक़बूल नक़्श
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मुझे ये ज़ोम कि मैं हुस्न का मुसव्विर हूँ
उन्हें ये नाज़ कि तस्वीर तो हमारी है
मक़बूल नक़्श
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पत्थर भी चटख़्ते हैं तो दे जाते हैं आवाज़
दिल टूट रहे हैं तो सदा क्यूँ नहीं देते
मक़बूल नक़्श
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यूँ तो अश्कों से भी होता है अलम का इज़हार
हाए वो ग़म जो तबस्सुम से अयाँ होता है
मक़बूल नक़्श
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ज़िंदगी ख़्वाब देखती है मगर
ज़िंदगी ज़िंदगी है ख़्वाब नहीं
मक़बूल नक़्श