एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ
कितनी दहलीज़ों पे सज्दा एक पेशानी करे
महताब हैदर नक़वी
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मतलब के लिए हैं न मआनी के लिए हैं
ये शेर तबीअत की रवानी के लिए हैं
महताब हैदर नक़वी
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