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कैफ़ी हैदराबादी शायरी | शाही शायरी

कैफ़ी हैदराबादी शेर

12 शेर

अपना ख़त आप दिया उन को मगर ये कह कर
ख़त तो पहचानिए ये ख़त मुझे गुमनाम मिला

कैफ़ी हैदराबादी




और भी तो हैं ज़माने में तुम्हारे आशिक़
एक मैं ही तुम्हें क्या क़ाबिल-ए-इल्ज़ाम मिला

कैफ़ी हैदराबादी




दिल लेने के अंदाज़ भी कुछ सीख गया हूँ
सोहबत में हसीनों की बहुत रोज़ रहा हूँ

कैफ़ी हैदराबादी




हम आप को देखते थे पहले
अब आप की राह देखते हैं

कैफ़ी हैदराबादी




हर तौर हर तरह की जो ज़िल्लत मुझी को है
दुनिया में क्या किसी से मोहब्बत मुझी को है

कैफ़ी हैदराबादी




ख़म सुबू साग़र सुराही जाम पैमाना मिरा
मेरे साक़ी जब मिरा तू है तो मय-ख़ाना मिरा

कैफ़ी हैदराबादी




मज़ा है तिरे बिस्मिलों को तड़प में
तड़प में नहीं बिस्मिलों में मज़ा है

कैफ़ी हैदराबादी




मोहब्बत में क्या क्या न कुछ जौर होगा
अभी क्या हुआ है अभी और होगा

कैफ़ी हैदराबादी




रक़ीब दोनों जहाँ में ज़लील क्यूँ होता
किसी के बीच में कम-बख़्त अगर नहीं आता

कैफ़ी हैदराबादी