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हर तौर हर तरह की जो ज़िल्लत मुझी को है | शाही शायरी
har taur har tarah ki jo zillat mujhi ko hai

ग़ज़ल

हर तौर हर तरह की जो ज़िल्लत मुझी को है

कैफ़ी हैदराबादी

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हर तौर हर तरह की जो ज़िल्लत मुझी को है
दुनिया में क्या किसी से मोहब्बत मुझी को है

ख़ुद मैं ने अपने-आप को बद-नाम कर दिया
साबित हुआ कि मुझ से अदावत मुझी को है

तुम भी तो रोज़ देखते रहते हो आईना
सच बोलो क्या पसंद ये सूरत मुझी को है

तुम को तो कुछ ज़रूर नहीं पास-ए-दोस्ती
हाँ ये ज़रूर है कि ज़रूरत मुझी को है

जब लुत्फ़ था कि उस को भी होता मिरा ख़याल
'कैफ़ी' ग़ज़ब तो ये है मोहब्बत मुझी को है