ख़ुद अपने आप से लर्ज़ां रही उलझती रही
उठा न बार-ए-गराँ रात की जवानी से
जालिब नोमानी
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पिघलते देख के सूरज की गर्मी
अभी मासूम किरनें रो गई हैं
जालिब नोमानी
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