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जालिब नोमानी शायरी | शाही शायरी

जालिब नोमानी शेर

2 शेर

ख़ुद अपने आप से लर्ज़ां रही उलझती रही
उठा न बार-ए-गराँ रात की जवानी से

जालिब नोमानी




पिघलते देख के सूरज की गर्मी
अभी मासूम किरनें रो गई हैं

जालिब नोमानी