बंद कर बैठे हो घर रद्द-ए-बला की ख़ातिर
एक खिड़की तो खुली रखते हवा की ख़ातिर
जलील हैदर लाशारी
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जाने कब कौन किसे मार दे काफ़िर कह के
शहर का शहर मुसलमान हुआ फिरता है
जलील हैदर लाशारी
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मिरे वजूद में वो इस तरह समो जाए
जो मेरे पास है सब कुछ उसी का हो जाए
जलील हैदर लाशारी
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तू ने दस्तक ही नहीं दी किसी दरवाज़े पर
वर्ना खुलने को तो दीवार में भी दर थे बहुत
जलील हैदर लाशारी
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वक़्त की मौज हमें पार लगाती कैसे
हम ने ही जिस्म से बाँधे हुए पत्थर थे बहुत
जलील हैदर लाशारी
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वो दिल का टूटना तो कोई वाक़िआ न था
अब टूटे दिल की किर्चियों की धार से बचो
जलील हैदर लाशारी
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