अब अपने-आप को ख़ुद ढूँढता हूँ 
तुम्हारी खोज में निकला हुआ मैं
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
बह गए आँसुओं के दरिया में 
आप की बात याद ही न रही
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
बूढ़ी माँ का शायद लौट आया बचपन 
गुड़ियों का अम्बार लगा कर बैठ गई
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
हमीं तुम से हमेशा मिलने आएँ क्यूँ 
तुम्हारे पाँव में मेहंदी लगी है क्या
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
काम सब हो गए मिरे आसाँ 
कौन समझेगा मेरी मुश्किल को
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैं ने 
फ़ौरन उस पर तितली आ कर बैठ गई
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
कर गया ख़मोश मुझ को देर तक 
चीख़ना वो एक बे-ज़बान का
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
खींच लाई है मोहब्बत तिरे दर पर मुझ को 
इतनी आसानी से वर्ना किसे हासिल हुआ मैं
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
मिरे ख़िलाफ़ सभी साज़िशें रचीं जिस ने 
वो रो रहा है मिरी दास्ताँ सुनाता हुआ
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

