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इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’ शायरी | शाही शायरी

इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’ शेर

12 शेर

मुद्दतों आँखें वज़ू करती रहीं अश्कों से
तब कहीं जा के तिरी दीद के क़ाबिल हुआ मैं

इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’




रिश्ता बहाल काश फिर उस की गली से हो
जी चाहता है इश्क़ दोबारा उसी से हो

इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’




ज़माने पर तो खुल कर हँस रहा था
तिरे छूते ही रो बैठा है पागल

इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’