अब किसी काम के नहीं ये रहे
दिल वफ़ा इश्क़ और तन्हाई
इंद्र सराज़ी
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और तो कोई था नहीं शायद
रात को उठ के मैं ही चीख़ा था
इंद्र सराज़ी
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बड़ी मुश्किल से बहलाया था ख़ुद को
अचानक याद तेरी आ गई फिर
इंद्र सराज़ी
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दिल के ख़ूँ से भी सींच कर देखा
पेड़ क्यूँ ये हरा नहीं होता
इंद्र सराज़ी
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दुख उदासी मलाल ग़म के सिवा
और भी है कोई मकान में क्या
इंद्र सराज़ी
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इक अजब शोर बपा है अंदर
फिर से दिल टूट रहा है शायद
इंद्र सराज़ी
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जिस का डर था वही हुआ यारो
वो फ़क़त हम से ही ख़फ़ा निकला
इंद्र सराज़ी
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जो मिला तोड़ता गया उस को
दिल लगा था मिरा हज़ारों से
इंद्र सराज़ी
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ख़ूब थी अब मगर बदल सी गई
तेरे इस शहर की ये तन्हाई
इंद्र सराज़ी
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