कितना प्यारा लगता है
होता है जब पूरा चाँद
इंद्र सराज़ी
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कुछ हवा का भी हाथ था वर्ना
पर्दा यूँ ही हिला नहीं होता
इंद्र सराज़ी
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क्या ख़बर कब बरस के टूट पड़े
हर तरफ़ ऐसी है घटा छाई
इंद्र सराज़ी
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क्या ख़बर क्या ख़ता मिरी थी कि जो
मुझ से रूठा रहा ख़ुदा मेरा
इंद्र सराज़ी
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राज़-दाँ होते हैं वो घर अक्सर
जिन घरों में धुआँ नहीं होता
इंद्र सराज़ी
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सावन की इस रिम-झिम में
भीग रहा है तन्हा चाँद
इंद्र सराज़ी
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