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इबरत मछलीशहरी शायरी | शाही शायरी

इबरत मछलीशहरी शेर

7 शेर

अपनी ग़ुर्बत की कहानी हम सुनाएँ किस तरह
रात फिर बच्चा हमारा रोते रोते सो गया

इबरत मछलीशहरी




जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते

इबरत मछलीशहरी




क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो न सका
कहीं वादे भी निभाने के लिए होते हैं

इबरत मछलीशहरी




सुना है डूब गई बे-हिसी के दरिया में
वो क़ौम जिस को जहाँ का अमीर होना था

इबरत मछलीशहरी




वो यूँ सुबूत-ए-उरूज-ओ-ज़वाल देता था
उठा के हाथ में पत्थर उछाल देता था

इबरत मछलीशहरी




ज़मीं के जिस्म को टुकड़ों में बाँटने वालो
कभी ये ग़ौर करो काएनात किस की है

इबरत मछलीशहरी




ज़िंदगी कम पढ़े परदेसी का ख़त है 'इबरत'
ये किसी तरह पढ़ा जाए न समझा जाए

इबरत मछलीशहरी