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गुलज़ार बुख़ारी शायरी | शाही शायरी

गुलज़ार बुख़ारी शेर

5 शेर

चलूँ तो मस्लहत ये कह के पाँव थाम लेती है
वहाँ जाना भी क्या हासिल जहाँ से कुछ नहीं होता

गुलज़ार बुख़ारी




जाने वालों की कमी पूरी कभी होती नहीं
आने वाले आएँगे फिर भी ख़ला रह जाएगा

गुलज़ार बुख़ारी




कौन पस-ए-मंज़र में उजड़े पैकरों को देखता
शहर की नज़रें लिबास-ए-ख़ुशनुमा में खो गईं

गुलज़ार बुख़ारी




रंग-ओ-बू का शौक़ आशोब-ए-हवा में ले गया
तितलियाँ घर से निकल कर इब्तिला में खो गईं

गुलज़ार बुख़ारी




ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रक्खे हुए हैं
आज-कल सिदक़-ओ-सफ़ा ताक़ पे रक्खे हुए हैं

गुलज़ार बुख़ारी