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फ़ारूक़ नाज़की शायरी | शाही शायरी

फ़ारूक़ नाज़की शेर

15 शेर

आप की तस्वीर थी अख़बार में
क्या सबब है आप घर जाते नहीं

फ़ारूक़ नाज़की




अब फ़क़ीरी में कोई बात नहीं
हश्मत-ओ-जाह-ओ-कर्र-ओ-फ़र दे दे

फ़ारूक़ नाज़की




बहकी हुई रूहों को तसल्ली दे कर
खोए हुए अज्साम की जन्नत हो जा

फ़ारूक़ नाज़की




भटक न जाता अगर ज़ात के बयाबाँ में
तो मेरा नक़्श-ए-क़दम मेरा राहबर होता

फ़ारूक़ नाज़की




हिसार-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास में है बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ की बस्ती
मुझे ख़बर ही नहीं कि अब मैं जुनूब में या शुमाल में हूँ

फ़ारूक़ नाज़की




जब कोई नौजवान मरता है
आरज़ू का जहान मरता है

फ़ारूक़ नाज़की




जुनूँ-आसार मौसम का पता कोई नहीं देगा
तुझे ऐ दश्त-ए-तन्हाई सदा कोई नहीं देगा

फ़ारूक़ नाज़की




काँच के अल्फ़ाज़ काग़ज़ पर न रख
संग-ए-मअ'नी बन के टकराऊँगा मैं

फ़ारूक़ नाज़की




मैं हूँ 'मुज़्तर' बदन की नगरी में
मेरे हिस्से में ला-मकाँ लिखना

फ़ारूक़ नाज़की