मुझ से क्या पूछते हो नाम पता
मैं तो बस आप का ही साया हूँ
फ़ारूक़ नाज़की
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क़द्रों की हदें तोड़ नई तरह निकाल
दम तुझ में अगर है तो बाग़ी हो जा
फ़ारूक़ नाज़की
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संग-परस्तों की बस्ती में शीशा-गरों की ख़ैर नहीं है
जिन की आँखें नूर से ख़ाली उन के दिल हैं आहन आहन
फ़ारूक़ नाज़की
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सितारे बोती रहीं नींद से तही आँखें
इधर ये हाल कि दामन भी तर नहीं होता
फ़ारूक़ नाज़की
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सुना है लोग वहाँ मुझ से ख़ार खाते हैं
फ़साना आम जहाँ मेरी बेबसी का है
फ़ारूक़ नाज़की
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तू ख़ुदा है तो बजा मुझ को डराता क्यूँ है
जा मुबारक हो तुझे तेरे करम का साया
फ़ारूक़ नाज़की
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