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फ़हीम शनास काज़मी शायरी | शाही शायरी

फ़हीम शनास काज़मी शेर

18 शेर

बदलते वक़्त ने बदले मिज़ाज भी कैसे
तिरी अदा भी गई मेरा बाँकपन भी गया

फ़हीम शनास काज़मी




बस एक बार वो आया था सैर करने को
फिर उस के साथ ही ख़ुश्बू गई चमन भी गया

फ़हीम शनास काज़मी




बिछड़ के तुझ से तिरी याद भी नहीं आई
मकाँ की सम्त पलट कर मकीं नहीं आया

फ़हीम शनास काज़मी




गुज़रा मिरे क़रीब से वो इस अदा के साथ
रस्ते को छू के जिस तरह रस्ता गुज़र गया

फ़हीम शनास काज़मी




ख़ुद अपने होने का हर इक निशाँ मिटा डाला
'शनास' फिर कहीं मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू हुए हम

फ़हीम शनास काज़मी




किन दरीचों के चराग़ों से हमें निस्बत थी
कि अभी जल नहीं पाए कि बुझाए गए हम

फ़हीम शनास काज़मी




किसी के दिल में उतरना है कार-ए-ला-हासिल
कि सारी धूप तो है आफ़्ताब से बाहर

फ़हीम शनास काज़मी




कोई भी रस्ता किसी सम्त को नहीं जाता
कोई सफ़र मिरी तकमील करने वाला नहीं

फ़हीम शनास काज़मी




फिर वही शाम वही दर्द वही अपना जुनूँ
जाने क्या याद थी वो जिस को भुलाए गए हम

फ़हीम शनास काज़मी