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दिल-ए-तबाह को अब तक नहीं यक़ीं आया | शाही शायरी
dil-e-tabah ko ab tak nahin yaqin aaya

ग़ज़ल

दिल-ए-तबाह को अब तक नहीं यक़ीं आया

फ़हीम शनास काज़मी

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दिल-ए-तबाह को अब तक नहीं यक़ीं आया
कि शाम बीत गई और तू नहीं आया

जहाँ से मैं ने किया था कभी सफ़र आग़ाज़
मैं ख़ाक धूल हुआ लौट कर वहीं आया

वो जिस के हाथ से तक़रीब-ए-दिल-नुमाई थी
अभी वो लम्हा-ए-मौजूद में नहीं आया

बस एक बार मिरी नींद छू गया कोई
फिर इस के ब'अद हर इक ख़्वाब-ए-दिल-नशीं आया

बिछड़ के तुझ से तिरी याद भी नहीं आई
मकाँ की सम्त पलट कर मकीं नहीं आया