बंद कमरे में तिरा दर्द न बुझ जाए कहीं
खिड़कियाँ खोल कि ये आग हवा चाहती है
फ़हीम जोगापुरी
हम अहल-ए-ग़म को हक़ारत से देखने वालो
तुम्हारी नाव इन्हीं आँसुओं से चलती है
फ़हीम जोगापुरी
जाएँगे एक रोज़ समुंदर की गोद में
दरिया के साथ रेत की तहरीर और हम
फ़हीम जोगापुरी
किसी के दर पे सज्दा करते करते
'फहीम' ऐसा न हो सर टूट जाए
फ़हीम जोगापुरी
कितने तूफ़ानों से हम उलझे तुझे मालूम क्या
पेड़ के दुख-दर्द का फूलों से अंदाज़ा न कर
फ़हीम जोगापुरी
मरघट पथ पर देख के हम को जाने क्या क्या सोचें वो
आँखों से क्या पुन्य कमाए होंटों से क्या दान हुए
फ़हीम जोगापुरी
मिलन के ब'अद आती है जुदाई
नरक भी स्वर्ग से कितना निकट है
फ़हीम जोगापुरी
न बात दिल की सुनूँ मैं न दिल सुने मेरी
ये सर्द जंग है अपने ही इक मुशीर के साथ
फ़हीम जोगापुरी
रस्ते में 'फहीम' उस की तबीअत का बिगड़ना
घर जाने का इक और बहाना तो नहीं है
फ़हीम जोगापुरी