गूँजूँगा तेरे ज़ेहन के गुम्बद में रात-दिन
जिस को न तू भुला सके वो गुफ़्तुगू हूँ मैं
बशीर सैफ़ी
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ख़ुद अपनी ही गहराई में
आख़िर को ग़र्क़ाब हुए हम
बशीर सैफ़ी
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तेरे नाम का तारा जाने कब दिखाई दे
इक झलक की ख़ातिर हम रात भर टहलते हैं
बशीर सैफ़ी
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