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भूला-बिसरा ख़्वाब हुए हम | शाही शायरी
bhula-bisra KHwab hue hum

ग़ज़ल

भूला-बिसरा ख़्वाब हुए हम

बशीर सैफ़ी

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भूला-बिसरा ख़्वाब हुए हम
कुछ ऐसे नायाब हुए हम

दरिया बन कर सूख गए थे
क़तरे से सैराब हुए हम

जाने किस मंज़र से गुज़रे
पल-भर में बरफ़ाब हुए हम

ख़ुद अपनी ही गहराई में
आख़िर को ग़र्क़ाब हुए हम

ख़्वाबों की ताबीर भी देखें
इतने कब ख़ुश-ख़्वाब हुए हम

बात ज़बाँ पर ला कर 'सैफ़ी'
बे-वक़'अत बे-आब हुए हम