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अज़्म बहज़ाद शायरी | शाही शायरी

अज़्म बहज़ाद शेर

10 शेर

आमादगी को वस्ल से मशरूत मत समझ
ये देख इस सवाल पे संजीदा कौन है

अज़्म बहज़ाद




ऐ ख़्वाब-ए-पज़ीराई तू क्यूँ मिरी आँखों में
अंदेशा-ए-दुनिया की ताबीर उठा लाया

अज़्म बहज़ाद




अजब महफ़िल है सब इक दूसरे पर हँस रहे हैं
अजब तंहाई है ख़ल्वत की ख़ल्वत रो रही है

अज़्म बहज़ाद




दरिया पार उतरने वाले ये भी जान नहीं पाए
किसे किनारे पर ले डूबा पार उतर जाने का ग़म

अज़्म बहज़ाद




कल सामने मंज़िल थी पीछे मिरी आवाज़ें
चलता तो बिछड़ जाता रुकता तो सफ़र जाता

अज़्म बहज़ाद




कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में
मैं ने शायद देर लगा दी ख़ुद से बाहर आने में

अज़्म बहज़ाद




कोई आसान रिफ़ाक़त नहीं लिक्खी मैं ने
क़ुर्ब को जब भी लिखा जज़्ब-ए-रक़ाबत लिख्खा

अज़्म बहज़ाद




रौशनी ढूँड के लाना कोई मुश्किल तो न था
लेकिन इस दौड़ में हर शख़्स को जलते देखा

अज़्म बहज़ाद




सवाल करने के हौसले से जवाब देने के फ़ैसले तक
जो वक़्फ़ा-ए-सब्र आ गया था उसी की लज़्ज़त में आ बसा हूँ

अज़्म बहज़ाद