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अज़हर हाश्मी शायरी | शाही शायरी

अज़हर हाश्मी शेर

15 शेर

बस रंज की है दास्ताँ उन्वान हज़ारों
जीने के लिए मर गए इंसान हज़ारों

अज़हर हाश्मी




दवाम पाएगा इक रोज़ हक़ ज़माने में
ये इंतिज़ार नहीं इंतिज़ार-ए-वहशत है

अज़हर हाश्मी




देखा नहीं जिस ने मिरे तूफ़ाँ को सुकूँ में
वो शख़्स मिरी रूह के अंदर नहीं उतरा

अज़हर हाश्मी




गुमान कहता है के मैं यक़ीं का शाइ'र हूँ
यक़ीन कहता है के मैं गुमाँ का शाइ'र हूँ

अज़हर हाश्मी




इतनी न इंतिशार की हिद्दत हो रू-ब-रू
इंसाँ ग़म-ए-हयात में जलता दिखाई दे

अज़हर हाश्मी




जिस ख़ाक से कहते हो वफ़ा हम नहीं करते
सोए हैं उसी ख़ाक में सुल्तान हज़ारों

अज़हर हाश्मी




कहीं सुराग़ नहीं है किसी भी क़ातिल का
लहूलुहान मगर शहर का नज़ारा है

अज़हर हाश्मी




ख़ुदा की रज़ा है न हासिल किसी को
ख़ुदा के लिए पर लड़ाई बहुत है

अज़हर हाश्मी




कोई हयात ज़माने को है अज़ीज़ बहुत
कोई हयात है कि रोज़ रोज़ मरती है

अज़हर हाश्मी