बे-वज्ह नहीं हुस्न की तनवीर में ताबिश
लौ देते हैं ख़ाकिस्तर-ए-उल्फ़त के शरारे
असर रामपुरी
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इश्क़ में शिकवा कुफ़्र है और हर इल्तिजा हराम
तोड़ दे कासा-ए-मुराद इश्क़ गदागरी नहीं
असर रामपुरी
तुम चाहो तो दो लफ़्ज़ों में तय होते हैं झगड़े
कुछ शिकवे हैं बेजा मिरे कुछ उज़्र तुम्हारे
असर रामपुरी
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