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वो जो नहीं हैं बज़्म में बज़्म की शान भी नहीं | शाही शायरी
wo jo nahin hain bazm mein bazm ki shan bhi nahin

ग़ज़ल

वो जो नहीं हैं बज़्म में बज़्म की शान भी नहीं

असर रामपुरी

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वो जो नहीं हैं बज़्म में बज़्म की शान भी नहीं
फूल हैं दिलकशी नहीं चाँद है चाँदनी नहीं

ढूँडा न हो जहाँ उन्हें ऐसी जगह कोई नहीं
पाई कुछ उन की जब ख़बर अपनी ख़बर मिली नहीं

आँख में हो परख तो देख हुस्न से पुर है कुल जहाँ
तेरी नज़र का है क़ुसूर जल्वों की कुछ कमी नहीं

इश्क़ में शिकवा कुफ़्र है और हर इल्तिजा हराम
तोड़ दे कासा-ए-मुराद इश्क़ गदागरी नहीं

जोश-ए-जुनून-ए-इश्क़ ने काम मिरा बना दिया
अहल-ए-ख़िरद करें मुआफ़ हाजत-ए-आगही नहीं

उफ़ ये नशीली अँखड़ियाँ हाए ये मस्ती-ए-शबाब
माना कि तुम ने पी नहीं कौन कहेगा पी नहीं

हिज्र की शब गुज़र गई फिर भी 'असर' ये हाल है
सामने आफ़्ताब है और कहीं रौशनी नहीं