मैं वुसअतों से बिछड़ के तन्हा न जी सकूँगा
मुझे न रोको मुझे समुंदर बुला रहा है
अरशद नईम
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शाम ढलते ही दिल के आँगन से
दर्द का कारवाँ गुज़रता है
अरशद नईम
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