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जो बुझ गए थे चराग़ फिर से जला रहा है | शाही शायरी
jo bujh gae the charagh phir se jala raha hai

ग़ज़ल

जो बुझ गए थे चराग़ फिर से जला रहा है

अरशद नईम

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जो बुझ गए थे चराग़ फिर से जला रहा है
ये कौन दिल के किवाड़ फिर खटखटा रहा है

मुहीब क़हतुर-रिजाल में भी ख़याल तेरा
नए मनाज़िर नए शगूफ़े खिला रहा है

वो गीत जिस में तिरी कहानी सिमट गई थी
उसे नई तर्ज़ में कोई गुनगुना रहा है

मैं वुसअतों से बिछड़ के तन्हा न जी सकूँगा
मुझे न रोको मुझे समुंदर बुला रहा है

वो जिस के दम से मैं उस की यादों से मुंसलिक हूँ
उसे ये कहना वो घाव भी भरता जा रहा है