हो सकता है कोई हमें भी ढूँडे इन बंजारों में
जाने किस की खोज में कब से फिरते हैं बाज़ारों में
अनवर नदीम
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मेरे कमरे में सभी चीज़ें हैं आज
ज़िंदगानी की तरह बिखरी हुई
अनवर नदीम
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