अब नाम नहीं काम का क़ाएल है ज़माना
अब नाम किसी शख़्स का रावन न मिलेगा
अनवर जलालपुरी
चाहो तो मिरी आँखों को आईना बना लो
देखो तुम्हें ऐसा कोई दर्पन न मिलेगा
अनवर जलालपुरी
कोई पूछेगा जिस दिन वाक़ई ये ज़िंदगी क्या है
ज़मीं से एक मुट्ठी ख़ाक ले कर हम उड़ा देंगे
अनवर जलालपुरी
मैं ने लिख्खा है उसे मर्यम ओ सीता की तरह
जिस्म को उस के अजंता नहीं लिख्खा मैं ने
अनवर जलालपुरी
मेरा हर शेर हक़ीक़त की है ज़िंदा तस्वीर
अपने अशआर में क़िस्सा नहीं लिख्खा मैं ने
अनवर जलालपुरी
मुसलसल धूप में चलना चराग़ों की तरह जलना
ये हंगामे तो मुझ को वक़्त से पहले थका देंगे
अनवर जलालपुरी
न जाने क्यूँ अधूरी ही मुझे तस्वीर जचती है
मैं काग़ज़ हाथ में लेकर फ़क़त चेहरा बनाता हूँ
अनवर जलालपुरी
सभी के अपने मसाइल सभी की अपनी अना
पुकारूँ किस को जो दे साथ उम्र भर मेरा
अनवर जलालपुरी