देखा है किसी आहू-ए-ख़ुश-चश्म को उस ने
आँखों में बहुत उस की चमक आई हुई है
अनीस अशफ़ाक़
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इस पे हैराँ हैं ख़रीदार कि क़ीमत है बहुत
मेरे गौहर की तब-ओ-ताब नहीं देखते हैं
अनीस अशफ़ाक़
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क्यूँ नहीं होते मुनाजातों के मअनी मुन्कशिफ़
रम्ज़ बन जाता है क्यूँ हर्फ़-ए-दुआ हम से सुनो
अनीस अशफ़ाक़
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| दुआ |
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न मेरे हाथ से छुटना है मेरे नेज़े को
न तेरे तीर को तेरी कमाँ में रहना है
अनीस अशफ़ाक़
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उस की मुट्ठी में जवाहिर थे नज़र मेरी तरफ़
और मुझे पैराया-ए-अर्ज़-ए-हुनर आता न था
अनीस अशफ़ाक़
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ये ख़ाना हमेशा से वीरान है
कहाँ कोई दिल के मकाँ में रहा
अनीस अशफ़ाक़
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