बिखर के छूट न जाऊँ तिरी गिरफ़्त से मैं
सँभाल कर मुझे ऐ मौज-ए-ख़ुश-अदा ले जा
अलीमुल्लाह हाली
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एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी
ढूँढता हूँ तो पस-ए-साहिल-ए-शब कुछ भी नहीं
अलीमुल्लाह हाली
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कोई पत्थर का निशाँ रख के जुदा हों हम तुम
जाने ये पेड़ किस आँधी में उखड़ जाएगा
अलीमुल्लाह हाली
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सदाओं के जंगल में वो ख़ामुशी है
कि मैं ने हर आवाज़ तेरी सुनी है
अलीमुल्लाह हाली
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