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अकबर मासूम शायरी | शाही शायरी

अकबर मासूम शेर

9 शेर

अब तुझे मेरा नाम याद नहीं
जब कि तेरा पता रहा हूँ मैं

अकबर मासूम




ऐसा एक मक़ाम हो जिस में दिल जैसी वीरानी हो
यादों जैसी तेज़ हवा हो दर्द से गहरा पानी हो

अकबर मासूम




है मुसीबत में गिरफ़्तार मुसीबत मेरी
जो भी मुश्किल है वो मेरे लिए आसानी है

अकबर मासूम




जिस के बग़ैर जी नहीं सकते थे जा चुका
पर दिल से दर्द आँख से आँसू कहाँ गया

अकबर मासूम




मैं किसी और ही आलम का मकीं हूँ प्यारे
मेरे जंगल की तरह घर भी है सुनसान मिरा

अकबर मासूम




रह जाएगी ये सारी कहानी यहीं धरी
इक रोज़ जब मैं अपने फ़साने में जाऊँगा

अकबर मासूम




तिरे ग़ुरूर की इस्मत-दरी पे नादिम हूँ
तिरे लहू से भी दामन है दाग़दार मिरा

अकबर मासूम




उजाला है जो ये कौन-ओ-मकाँ में
हमारी ख़ाक से लाया गया है

अकबर मासूम




वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं
मैं उस की धूप से साया बदल के आया हूँ

अकबर मासूम