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अहमद अली बर्क़ी आज़मी शायरी | शाही शायरी

अहमद अली बर्क़ी आज़मी शेर

6 शेर

अब मैं हूँ और ख़्वाब-ए-परेशाँ है मेरे साथ
कितना पड़ेगा और अभी जागना मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी




चप्पा चप्पा उस की गली का रहा है मेरे ज़ेर-ए-क़दम
जोश-ए-जुनूँ से अज़्म-ए-सफ़र तक एक कहानी बीच में है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी




इस हाल में कब तक यूँही घुट घुट के जियूँगा
रूठा है वो ऐसे कि मना भी नहीं सकता

अहमद अली बर्क़ी आज़मी




रूठने और मनाने के एहसास में है इक कैफ़-ओ-सुरूर
मैं ने हमेशा उसे मनाया वो भी मुझे मनाए तो

अहमद अली बर्क़ी आज़मी




समझ रहा था जिसे ख़ैर-ख़्वाह मैं अपना
वही है दुश्मन-ए-जाँ मेरा सब से बढ़ कर आज

अहमद अली बर्क़ी आज़मी




ज़िंदगी उस ने बदल कर मिरी रख दी ऐसी
न मुझे चैन न आराम है क्या अर्ज़ करूँ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी