हाए वो जिस की उम्मीदें हों ख़िज़ाँ पर मौक़ूफ़
शाख़-ए-गुल सूख के गिर जाए तो काशाना बने
alas the one whose aspirations do on autumn rest
when the leaves dry off and fall, they would make their nest
अफ़सर मेरठी
है तेरे लिए सारा जहाँ हुस्न से ख़ाली
ख़ुद हुस्न अगर तेरी निगाहों में नहीं है
अफ़सर मेरठी
जब सफ़र 'अफ़सर' कभी करते नहीं
देखे फिर क्यूँ हो तुम मंज़िल के ख़्वाब
अफ़सर मेरठी
मुझे फ़र्दा की फ़िक्र क्यूँ-कर हो
ग़म-ए-इमरोज़ खाए जाता है
अफ़सर मेरठी
सुख में होता है हाफ़िज़ा बेकार
दुख में अल्लाह याद आता है
अफ़सर मेरठी
तारों का गो शुमार में आना मुहाल है
लेकिन किसी को नींद न आए तो क्या करे
अफ़सर मेरठी