EN اردو
वो जो शाएर था | शाही शायरी
wo jo shaer tha

नज़्म

वो जो शाएर था

गुलज़ार

;

वो जो शाएर था, चुप सा रहता था
बहकी बहकी सी बातें करता था

आँखें कानों पे रख के सुनता था
गूँगी ख़ामोशियों की आवाज़ें!

जम्अ करता था चाँद के साए
गीली गीली सी नूर की बूँदें

ओक में भर के खड़खड़ाता था
रूखे रूखे से रात के पत्ते

वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे पक्के से लम्हे चुनता था

हाँ, वही, वो अजीब सा शाएर
रात को उठ के कुहनियों के बल

चाँद की ठोड़ी चूमा करता है!!
चाँद से गिर के मर गया है वो

लोग कहते हैं ख़ुद-कुशी की है