EN اردو
तीसरी पाली | शाही शायरी
tisri pali

नज़्म

तीसरी पाली

अख़्तर राही

;

वो भी इक अच्छा मुसव्विर था
पिछले बल्वे में ही उस के

दोनों बाज़ू कट गए
और उस बल्वे में उस की

दोनों आँखें बुझ गईं
नूर-ए-फ़ितरत की सभी शक्लें मिटीं

बड़ी मुश्किल से उस अंधे मुसव्विर को
एक कमरा चाल में ही मिल गया

और पड़ोसन के वसीले से जवाँ बेटी को भी
कार-ख़ाने में सदा की तीसरी पाली मिली

अब वो माँ की गोद में रातों को सोती भी नहीं
माँग अफ़्शाँ चूड़ियों की ज़िद में रोती भी नहीं