हम-चश्मों के ग़ोल मगन हैं शाख़ों पर
ख़ुश-रफ़्तार हवाएँ पंखे झलती हैं
गूलर के कच्चे फल भी हर जानिब हैं
मीठे पानी वाली झील है पहलू में
मौसम की शतरंजी चालें अन्क़ा हैं
कोई शिकारी भी इस सम्त नहीं आता
हरे-भरे जंगल की मुशफ़िक़ बाँहों में
रात गए जाने क्या बरसा है दिल पर
अलग-थलग बरगद की सूखी टहनी पर
हरियल पँख बिछाए गुम-सुम बैठा है
नज़्म
सूखी टहनी पर हरियल
अम्बर बहराईची