EN اردو
सूखा तन्हा पत्ता | शाही शायरी
sukha tanha patta

नज़्म

सूखा तन्हा पत्ता

मजीद अमजद

;

उस बैरी की ऊँची चोटी पर वो सूखा तन्हा पत्ता
जिस की हस्ती का बैरी है पतझड़ की रुत का हर झोंका

काश मिरी ये क़िस्मत होती काश मैं वो इक पत्ता होता
टूट के झट उस टहनी से गिर पड़ता कितना अच्छा होता

गिर पड़ता उस बैरी वाले घर के आँगन में गिर पड़ता
यूँ उन पाज़ेबों वाले पाँव के दामन में गिर पड़ता

जिस को मेरे आँसू पूजें उस घर के ख़ाशाक में मिल कर
जिस को मेरे सज्दे तरसें उस द्वारे की ख़ाक में मिल कर

उस आँगन की धूल में मिल कर मिटता मिटता मिट जाता मैं
उम्र भर उन क़दमों को अपने सीने पर मुज़्तर पाता मैं

हाए मुझ से न देखा जाए आया हवा का झोंका आया
डालियाँ लरज़ीं टहनियाँ काँपीं लो वो सूखा पत्ता टूटा